Thursday, November 1, 2012
Bharat Vigyan evam Taknik ki Aadhar Bhumi
भारत प्राचीन काल मे विज्ञान एवं तकनीक की आधार भूमि रहा है । कुछ युरोपीय विद्वानों की इस अवधारणा के विपरीत की प्राचीन भारतीय धर्म एवं आध्यात्म चिंतन में ही डूबे रहे, वस्तु्त़: प्राचीन भारतीय मनीषियों ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्घियॉं हासिल की । गौर से देखने पर ज्ञात होता है कि आधुनिक विज्ञान की जननी समझी जानेवाली युरोप की भूमि अंकगणित एवं बीजगणित के कुछ सूत्रों के लिए भारतीय मनीषियों के अन्वेषण की ही ऋणी है ।
सिन्धु घाटी सभ्यता के काल से ही भारत में विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी रहा है । सिन्धु सभ्यता वालों को धातु प्रगलन विधि का ज्ञान था साथ ही उन्होंने ज्यामिति, वास्तुविज्ञान, उन्न्त मृदभांड कला तथा नाप-जोख की इकाईयों का अच्छा ज्ञान था । अशोक स्तम्भों का निर्माण जिस तरह एकाश्म पत्थरों से किया गया एवं जिस प्रकार की चमकीली पॉलिस उस पर की गई, वह न सिर्फ आश्चकर्यजनक है बल्कि शोध का विषय भी है । प्राचीन उत्तरी काले पॉलिसदार मृदभांडों (एनबीपी) पर एक विशेष प्रकार की चमक उत्पन्न की जाती थी वह आज भी अद़भुत प्रतीत होता है । आगे प्राचीन भारत के लोगों ने गणित एवं बीजगणित के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया । इन्होंने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में ऐसे-ऐसे आविष्कार किये, जिनका ज्ञान यूरोप को पुनर्जागरण के बाद ही हुआ ।
गणित के विकास में भारत का उल्लेखनीय योगदान है । प्राचीन भारतीयों ने वर्गमूल एवं घनमूल की इकाईयों को विकसित किया । उनकी महत्व पूर्ण देन हैं, अंकनपद्धति, दशमलव प्रणाली तथा शुन्य का आविष्कार । अंकन पद्धति का विकास सबसे पहले भारत में हुआ । अशोक के शिलालेखों में गणितीय अंकन प्रणाली का प्रयोग हुआ है, जो ई. पू. तीसरी सदी का है । दशमलव का आविष्कार भारत में हुआ । बौद्ध धर्म प्रचारकों ने इस ज्ञान को चीन में फैलाया । दूसरी सदी ई. पू. में ही भारत में शून्य का प्रयोग होता आ रहा था । अरबों ने इन गणितीय प्रणालियों एवं शून्य के ज्ञान को भारत से आठवी शताब्दी मे सीखा तथा इसे यूरोप में फैलाया । यूरोपीय इसे अरबी पद्धति कहते थे, जबकि अरब वाले इसे हिंदसा कहते थे ।
खगोल विज्ञान के क्षेत्र में में भी प्राचीन भारतीय ने उल्लेखनीय योगदान दिया । प्राचीन भारत में दो खगोलविद हुए, आर्यभट्ट और वराहमिहिर । आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण एवं चन्द्राग्रहण के कारणों की व्याख्या की । उन्होंने अनुमान के आधार पर पृथ्वी का मान निकाला जो आज भी सही माना जाता है । वराहमिहिर ने बताया कि चन्द्र मा पृथ्वी का चक्कर लगाता है । उनके खगोलीय सिद्धांत बृहतसंहिता नामक ग्रंथ में संकलित हैं ।
अथर्ववेद में अतिसार, ज्वर एवं जलोदर के उपचार की विधि बतलायी गई है । दूसरी सदी ईसा पूर्व में दो महान चिकित्सक हुए, चरक और सुश्रुत । सुश्रुत संहिता भारतीय चिकित्साक शास्त्र का विश्वकोष है । इसमें यक्ष्मा, मिर्गी, कोढ एवं ज्वर के उपचार की विधि है । सुश्रुत ने उस काल में भी शल्य क्रिया की विधि विकसित की । सुश्रुत संहिता में शल्याक्रिया द्वारा मोतियाबिंद एवं पथरी के उपचार की विधि बतायी गई है ।
रसायण विज्ञान में भी भारत विकसित अवस्था में था । धातु प्रगलन विधि में भारतीय प्रवीण थे । भारतीय इस्पात पूरी दुनिया में बेजोड़ था । यह वुट्ज के नाम से जाना जाता था । चौथी शताब्दी में स्थापित गुप्तकालीन दिल्ली के मेहरौली का लौह स्म्भच आज भी अपनी मजबूती एवं सुघड़ता के लिए विख्यात है । प्राचीन भारतीयों ने रसायनिक रंगों का भी अच्छा विकास किया था । अजंता के गुफाओं की चित्रकारी का मनोहारी और चटख रंग आज भी फीका नहीं पड़ा है । भौतिक विज्ञान में भी प्राचीन भारतीयों ने उल्लेखनीय उपलब्धियॉं हासिल की । प्राचीन मनीषियों ने माना कि प्रत्येक पदार्थ परमाणु से बने हैं । परमाणु मिलकर अणु का निर्माण करते हैं ।
भाषा विज्ञान में भी काफी प्रगति हुई । भाषा व्याकरण का सर्वप्रथम विकास भारत में ही हुआ । चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में पाणिनी ने संस्कृत को व्याकरण के नियमों से आबद्ध किया। आगे याज्ञवल्क्य एवं पातंजली ने भाषा विज्ञान का काफी विकास किया । इस प्रकार प्राचीन भारत में विज्ञान एवं तकनीक का अद्भुत विकास हुआ ।
मध्य काल में कतिपय कारणों से भारतीय विज्ञान एवं तकनीक के विकास की धारा अवरूद्ध हो गई, जिसका खामियाजा आधुनिक भारत को भुगतना पड़ रहा है । आज हम विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में पश्चिमी जगत की ओर से तकनीक के हस्तांतरण के लिए कई संधियॉं कर रहे हैं । आज हम बात-बात पर पश्चिम का मूँह ताकने को आदी हो चुके हैं । परन्तु विज्ञान एवं तकनीक के योगदान के क्षेत्र में जब हम प्राचीन भारत की ओर झॉंकते हैं तो हमें गर्व का अनुभव होता है । आज जिस हिग्स बोसान कण एवं गॉड पार्टिकल की बात की जा रही है, प्राचीन भारतीय मनीषियों ने पहले ही यह कह दिया था कि कण-कण में भगवान है और कोई शक्ति इस ब्रह़मांड को संचालित कर रही है ।
Thursday, April 30, 2009
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